कल तक जिनको पाठ पढ़ाया शिक्षा और संस्कृति का डिग्री पाकर आज मुझे वो ज्ञान सिखाने आए हैं।
कल तक पानी रास नहीं था आज चले हैं मयखाने हाथों में प्याले ले लेकर वो मुझे पिलाने आए हैं।
कल तक जिनके आंसू पोंछे मैंने अपने हाथों से आज मुझे गमगीन देखकर वो समझाने आए हैं।
कल तक घर में अन्न नहीं था आज खड़े गोदामों में मेरी छत पर दाना लेकर चिड़ियों को चुगाने आए हैं।
कल तक जिनका साथ निभाया घनी अंधेरी राहों में दीपक लेकर आज मुझे वो राह दिखाने आए हैं।
कल तक कहते थे यार हैं मेरे जीवन भर साथ निभाएंगे
पड़ी जरुरत आज मुझे तो नजरों को छुपाने आए हैं।
विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर
अदिति झा
07-May-2023 07:34 PM
Nice 👍🏼
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